रविवार, 6 नवंबर 2011

पिता का न होना!!

                                    कल देव उठनी एकादशी थी. ठीक पांच वर्ष पूर्व, इसी तिथि को पापा हुकुम दिवंगत हुए थे. उनके ना होने से आज आसपास सभी कुछ दिशाहीन दिखाई देता है. सब बेमज़ा है. 

हालाँकि काफी हमदर्द है, काफी हमराज़ हैं. मगर पापा की जगह कोई नहीं ले सकता. हर साल मैं इस सच को बिसारने की कोशिश करता हूँ, कि पापा नहीं हैं, और हर साल ये बादल फिर घुमड़ आते हैं. 
                                      खैर मैं तो वक़्त के साथ और बातों में मशगुल हो जाऊंगा. मगर मम्मी..? वो कभी अपना दुःख ज़ाहिर नहीं करते, और न ही करेंगे. उनके जैसा मजबूत दिल भगवान हर किसी को नहीं देता. मैं चाहे मम्मी को सारी खुशिया दे दूं, मगर पापा नहीं ला सकता. इस जगह खुद को बहुत अकेला पाता हूँ. मम्मी ख़ुद की और पापा की भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं. राजपूत समाज क्या, कोई भी समाज हो, विधवा होना एक अभिशाप हो जाता है, जो एक बेकुसूर औरत को ज़िन्दगी भर झेलना पड़ता है. मैं शायद कभी नहीं जान पाउँगा कि ये बेरंग रिवाज़ क्यूँकर बनाये गए? न ही किसी से पूछ पाउँगा. ये तो सदियों का चलन है. है ना ? 


                                              मैंने लोगो को बेकार की बातों पर झगड़ते देखा है, ख़ुद की ज़िन्दगी को नरक बनाते देखा है. मग़र याद रखिये, जीवन की सांझ में यही साथी होगा जो आपको हौंसला देगा. बाकी सारे रिश्ते-नाते अपनी राह पकड़ेंगे, और इसमें कुछ गलत भी नहीं है. सब को हक है. तो इस ज़िन्दगी की इज्ज़त करना सीखिए. हर पल को बेशकीमती बना दीजिये. अपने जीवन साथी को अपना वक़्त दीजिये. 
                          आज जब मेरी शादी की तैयारियां चरम पर हैं तो वो शख्स नहीं हैं जो ऐसे मौके की जान हुआ करता था. शादी होनी है सो होगी, दुनिया भी चलती रहेगी, पर मेरे अन्दर से कुछ हिस्सा उसी वक़्त के मुहाने पे छुट गया है जहाँ पापा ने साथ छोड़ दिया था. मैं चाह कर भी वहां से खुद को नहीं ला पाता. सब की ख़ुशी के लिए मुस्कुराऊंगा भी, पर जिसे अपनी ख़ुशी दिखानी थी, वो मेरे पास नहीं है. 


                    सिर्फ यही कहूँगा कि जीवन में बाकी रिश्ते बनते-बिगड़ते  रहते हैं, सब खोने पर फिर से मिल भी जाता है, मग़र माँ-बाप एक ही बार मिलते हैं. जो ख़ुशनसीब अपने पिता के सानिध्य में हैं, उन्हें यही कहूँगा कि उन्हें वक़्त दो, उनका आशीर्वाद लो, उनसे उनका वक़्त जानो, अपनी जड़ो को पहचानो. अपने पिता को एहसास दो कि वो आपके लिए कितने ख़ास हैं.. क्यूंकि वक़्त आपके लिए इंतज़ार नहीं करेगा. 

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